किसी ने कहा अंगारों भरे रास्ते में क्यों चलते हो,कांटों भरे बिस्तर में क्यों लेटते हो, भरी दोपहर में सूरज से शीतलता की उम्मीद क्यों करते हो, अहंकार भरे दीपक की लौ को बचाकर अपना हाथ क्यों जलाते हो
मैंने कहा ये कलियुग है भिक्षा मांग कर पेट नहीं भरा जा सकता इसलिए अंगारों में चलकर अपने और अपने परिवार की भुख मिटाता हूं, खुद कांटों भरे बिस्तर में सो कर परिवार को चैन की नींद सुलाता हुं,भरी दोपहर में धूप में खड़ा हो कर परिवार को अपनी परछाई की छांव दिलाता हुं ,अहंकारी दीपक की लौ से मेरा परिवार न जले इसलिए उसे हवा से बचाकर अपना हाथ जलाता हुं।